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दर्द के कान उमेठ कर गुस्सा निकाल लेता हूं। नाकामी का कुर्ता फाड़ कर नंगे बदन ही सही फिर चल पड़ता हूं। कोई सैलानी नहीं हूं, परिंदा भी नहीं, जैसा हूं बस ऐसा ही हूं।
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